"क्षणिक लहरें, शाश्वत जीवन"
![]() |
लहरों के उफान पर, कागज़ का पन्ना बहा,
समुद्र की गहराइयों में, किस्सा इक सजा।
हर बूँद ने लिखी पंक्ति, हर लहर ने गाया इक राग,
फिर भी कथा अधूरी रही, जैसे छूट गया कोई अनुराग।
हवा के झोंके आए, पन्ने सारे उड़ गए,
कुछ अधूरे रह गए, कुछ पर छंद नए जुड़ गए।
सूरज तपा, चाँदनी हँसी, सपनों को विस्तार मिला,
रेत पे लिखी कहानी को, सतरंगों का आधार मिला।
सूरज की किरणें कहें, "हमने भी रंग भर दिया,"
चाँद की ठंडक बोले, " हमने भी सपनों को संवार दिया।
छोटी-सी लहर मुसकाई, बोली, "
मैं ही तो जीवन हूँ,
हर दिन का नया सफर हूँ,
रेत पे लिखती अपना विवरण"
हर दिन का इक नया परिवर्तन ।
समय की लहरों में, जीवन के किस्से ढले,
यादों के फूल, जीवन स्मृतियों की माला में मोती बनकर सजे।
छोटी सी, चंचल सी, लहर उठीं, सपनों का आँचल ओढ़ चली।
रेत से महल बनाए, पल में टूटे, पल में सजाए,
कभी नावें चलीं, कभी मल्लाह ने गीत गाए ।
गीतों में जिंदगी के रंग बिखराए ,
हर गीत की गुनगुनाहट में जिंदगी के रंग है समाए ।
कभी बरगद की छाँव तले, ठहर गई ज़िंदगी,
समय के संग, कुछ और राज़ कह गई ज़िंदगी।
लहर ने बरगद से पूछा,
"तू क्यों इतना स्थिर खड़ा?
मैं तो बहती रहती हूँ, तेरा धैर्य बड़ा!"
बरगद हँसा, फिर बोला,
तू तो चंचल हवा सी,, मैं धैर्य की मूरत,
तू बदलते समय का प्रवाह, मैं पर्वत की सूरत "
तू पलभर की कहानी, मैं धरती का ज्ञानी।"
हाँ "मैं हूँ क्षणभंगुर कहानी,
रेत पर लिखती अपनी जिंदगानी।
सूरज ढला, लहर थकी,लहरों में लहर खो गई,
सदा के लिए सो गई,
रेत की लिखावट मिट गई,
रेत की लकीरें खो गईं,
सूरज डूबा, चाँद मुस्काया,
"रेत पर बनी छवि पलभर में खो गई,
कथा धूमिल हो गई, लहरों में ही सो गई,"
धीरे-धीरे खो गई, मृत्यु की गहरी नींद में सो गई!!!
नई लहर आई। नव जीवन का इक संदेश लाई।
जीवन का हर पल , उभरता है ढलता है,
जीवन बस यूँ ही चलता है,
पल पल जीवन सागर से मिलता है।
जीवन भी तो इक लहर है,
जो बहता है, बदलता है, फिर ठहरता है।
अपनी छाप छोड़, अंत में सागर में विलीन, असीम गहराईयों का इक अद्भुत संगम "रंगीन" ।
लहरों पर लिखी कहानी, कभी देखी, कभी खोई।
जो मिली, वो यादों में रही, जो नहीं, वो जल में समाई।
जीवन भी तो लहर है ,
आता है और जाता है,
सागर की बाँहों में, अंत में समाता है।
बस यही है जीवन का मर्म, हर पल अनूठा, हर कथा अमर, बूंद-बूंद ने जो लिखा था, वो लहरों ने सहेज लिया था।
यादों के मोती से, हर पल सुसज्जित था।काल के दर्पण में, हर रूप प्रतिबिंबित था, सागर की गोद में, हर स्मृति ने घर बना लिया था।
-"लहरों पर लिखे जीवन के अध्याय, अनु चंद्रशेखर की कलम से।"
नोट: अनु चंद्रशेखर | CC BY-NC-ND 4.0 | सभी अधिकार सुरक्षित ,(विस्तृत जानकारी के लिए, देखें https://abhivyaktanubhuti.blogspot.com/p/license-usage-disclaimer.html )
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें