"घर का संबल"
मैं हूँ सबसे बड़ा, जिम्मेदारियों का सार,
घर के इस ताने-बाने का अडिग आधार।
सबसे बड़ा हूँ, सर पर भार उठाए,
हर फर्ज़ को दिल से सदा निभाए।
छोटों के सपनों को दूं आकार,
बड़ों की आशा का बनूं आधार।
रात के अंधेरे में दीप सा जलूं,
हर चुनौती में मैं चट्टान सा ढलूँ।
हर खुशी में स्नेह का उजाला भरूं,
परिवार का हर कदम संभालूं, बढ़ूं।
आँसुओं को मिटाऊं, हँसी सजाऊं,
हर दिल में भरोसे का दीप जलाऊं।
जिम्मेदारियों का सार मैं,
घर का ताना-बाना हूँ आधार मैं।
सबसे बड़ा हूँ, सर पर भार उठाए,
हर फर्ज़ को दिल से सदा निभाए।
नदी के बहाव सा जीवन बहता जाए,
हर मोड़ पर एक नया सबक सिखाए।
जीवन सुख-दुख की धाराओं में ढलता रहे,
जीवन का हर सुर सदा सजाता रहे।
घर का संबल, मैं तने हुए पेड़ सा,
हर आंधी में अडिग, खड़ा हर बेड़ सा।
जड़ों में बसा है स्नेह का किस्सा,
हर शाख में फैला जीवन का हिस्सा।
धूप हो या छांव, सदा देता सहारा,
हर बंधन को बांधे, रिश्तों का प्यारा।
प्रेम से सिंचित, ये परिवार "हमारा",
हर खुशी का स्रोत, हूं मैं इसकी "धारा"।--"रचना: अनु चंद्रशेखर"
नोट: अनु चंद्रशेखर | CC BY-NC-ND 4.0 | सभी अधिकार सुरक्षित (विस्तृत जानकारी के लिए, देखें https://abhivyaktanubhuti.blogspot.com/p/license-usage-disclaimer.html)
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