"नारी अंतर्मन का मौन राग"


 "नारी अंतर्मन का मौन राग"




 हर नारी की व्यथा करूँ कैसे बयाँ, 

 हर दिन संघर्ष, हर क्षण एक अरमां।

सूरज संग उठे, चाँद संग सोए, हर पल में त्याग, 

जीवन का यह कैसा राग।

नित उठो, नित काम करो, अनंत अपार, 

अपना भी तो कुछ करो विचार।

घर का भार   उठाए

 हर फर्ज़ को दिल से सदा निभाए।

बर्तन की खनक, झाड़ू की धूल, 

घर  के हर कोने में है उसकी मेहनत के फूल। 

चूल्हे की ज्वाला, कपड़ों का ढेर, 

थकती है काया, मन भी है ढेर।

चूल्हा-चौका, घर-द्वार सजाए, 

हर रिश्ते की डोर को स्नेह से बांधाए ।

जीना हुआ पराया, 

खुद से भी जैसे नाता गँवाया।

"खुद"  के सपनों का  रंग है फीका इक उड़ता सी छाया।

पर फर्ज निभाने का, हौसला ना हारा। 

अपनों के सपनों को है दिल में उतारा।

नारी की व्यथा, सुनेगा कौन?

चुप है ससुराल, चुप है मायका, और समाज भी है मौन।

हर दिन संघर्ष, हर रात एक कथा, जीवन की गाथा, नारी की व्यथा।--- "रचना: अनु चंद्रशेखर"





नोट: अनु चंद्रशेखर | CC BY-NC-ND 4.0 | सभी अधिकार सुरक्षित (विस्तृत जानकारी के लिए, देखें  https://abhivyaktanubhuti.blogspot.com/p/license-usage-disclaimer.html)

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