✦ निस्तब्धता में स्वर: आत्म-छाया की ओर एक यात्रा ✦
एक काव्यात्मक ध्यान—निस्तब्धता, छाया और आत्म-प्रेम की पुनर्प्राप्ति पर
स्वरूप की साधना [The Becoming Series] की यह अंतिम प्रस्तुति हमें स्मरण कराती है कि पूर्णता कोई अभिनय नहीं—यह स्वीकार का अभ्यास है।
हम कोई त्रुटि नहीं जिन्हें ठीक किया जाना चाहिए—हम अनुभव हैं, जिन्हें अपनाया जाना है।
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✦ प्रस्तावना ✦
मैंने यह लिखना इसलिए शुरू नहीं किया कि आपको बताया जा सके कि ठीक कैसे होना है।
मैंने यह इसलिए लिखा क्योंकि मुझे “स्वयं” याद रखना था—कैसे मैं “स्वयं” में लौट आई।
यह कोई अंतिम विराम नहीं—यह एक साँस है दो “आरंभ” के बीच।
वह स्थान जहाँ परिवर्तन वास्तव में घटित होता है—
साँसों की चुप्पी में, छाया की निकटता में, और स्मृति की पुनर्प्राप्ति में।
यदि आप यहाँ नये हैं, तो पहले यह पढ़ना सहायक हो सकता है: 🔗 The Becoming Series से — [स्वरूप की साधना] | [बनने की शांत विद्रोहिता]
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✦ शाश्वत “सत्य”की भूमिका ✦
- आत्म-प्रेम कोई प्रदर्शन नहीं—वह वापसी है।
- निस्तब्धता कोई अनुपस्थिति नहीं—वह भाषा है।
- छाया कोई खतरा नहीं—वह जुड़वाँ है, जो जन्म से साथ रही है।
✧⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯⎯✧✦ अनुभाग परिचय ✦
- निस्तब्धता में स्वर-भीतर की आवाज़ की पुकार और पूर्णता की अनुभूति
- जब मेरी छाया मुझसे मिली – भूली कोमलता की स्वीकृति
- आत्म-प्रेम का गहरा हृदय – उन हिस्सों से प्रेम जो अनकहे रहे
हर अनुभाग एक मौन रहस्योद्घाटन है—
एक निमंत्रण भीतर लौटने का, पुनः जुड़ने का, और बिना शर्त अपनाने का।
अब इसी भाव से इस रचना को स्वीकार करें—
न व्याख्या की आवश्यकता है, न अनुवाद की अनुमति।
यह वह अनुभूति है जो केवल उसी धरातल पर सुनी जाती है,
जहाँ आत्मा अपने भीतर लौटती है, और कविता स्वयं को थामे खड़ी रहती है।
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✦ निस्तब्धता में स्वर✦
“मैंने दुनिया में अर्थ खोजा, पर जाना — वो तो मेरे भीतर मौन प्रतीक्षा में था।”
मैंने निस्तब्धता में सुना—
और आत्मा की वह ध्वनि
पिघलती रही मौन में।
उत्तर छिपे थे
उस नीरव उपस्थिति में—
ना किसी दूर खड़े व्यक्ति में,
और न ही क्षणिक वस्तुओं की चमक में,
बल्कि मेरी साँसों की स्थिरता में---“क्षणिक बनाम निरंतर”।
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ब्रह्मांड ने शांत स्वर में संवाद किया।
जैसे अमावस्या के बाद चाँद लौटता है—
बिना शोर… जैसे साँस खुद को बिना बोले व्यक्त कर जाए।
और मैं पूर्ण थी।
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✦ “जब मैं अपनी छाया से मिली” ✦
एक क्षण आया — शांत, अनदेखा —
जब मैंने उम्मीद छोड़ दी कि कोई मुझे ठीक करेगा।
ना कोई रक्षक, ना कोई देवदूत,
ना बाहर से आती कोई शांत पुकार।
सिर्फ़ मैं थी —
वही मैं, जिसे मैंने दूसरों की सुविधा के लिए स्वयं ही दबा दिया था।
वो मेरी छाया थी— मौन में खड़ी,
बनी थी पुराने अपराधबोधों,
अधूरी ज़रूरतों, भूले हुए स्वप्नों,
और आधे निगले आँसुओं से।
🔹 छाया को देखना → घाव को छूना → उसे थामने का चुनाव 🔹
पहले मैं सहम गई।
“क्या वो बहुत ज़्यादा घायल थी?
अपनी पीड़ा में उग्र,
अपनी सच्चाई में निर्वस्त्र,
इतनी असली कि पास लाना मुश्किल लगे?
इतनी नाज़ुक, असंरक्षित, और पारदर्शी—
कि उसे गले लगाना भी डराए?”
लेकिन उसकी आँखों में कुछ था —
कुछ जाना-पहचाना, कुछ ज्वलंत,
जैसे वो कह रही हो:
“मैं इस आलिंगन की प्रतीक्षा में जन्मों से हूँ।”
और उस दिन, मैंने अपनी बाँहें खोल दीं—
ना उस हिस्से के लिए जो प्रशंसा पाता था,
ना उस निखरी हुई शक्ति के लिए जो दिखावा करती थी,
और न ही उस ताकत के लिए जो हमेशा संभालती थी।
बल्कि उस हिस्से के लिए थी—
जो ताकत के पीछे रो रही थी,
पूर्णता के पीछे सिकुड़ रही थी,और बस अपनाए जाने के लिए अपनी आग बुझा रही थी।
उस दिन, मैंने उससे भागना बंद कर दिया।
और जब मैंने उसे गले लगाया—
मैंने उस प्रेम को पाया जो स्वीकृति नहीं माँगता।
जो तब भी तुम्हारे साथ रहता है,
जब तुम टूटे, थके, और डर में डूबे होते हो।
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✦ आत्म-प्रेम का गहरा हृदय ✦
स्वयं से प्रेम का अर्थ यह नहीं कि हम अपने उसी रूप को सँवारें,
जो दुनिया को सबसे आसान लगता है।
सच्चा प्रेम है—
अपने सम्पूर्ण सत्य को सम्मान देना।
हर उस हिस्से को जो हम हैं।
यहाँ तक कि अपनी छाया को भी।
विशेष रूप से, अपनी छाया को।
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✦ अंतिम आशीर्वचन ✦
मुझे बचाए जाने की आवश्यकता नहीं।
मुझे पूर्ण होने की भी नहीं।
मुझे सिर्फ उपस्थित होना है—
अपनी साँस के साथ, अपनी छाया के साथ,
और अपनी सच्चाई के साथ।
यही काफ़ी है।
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✦ समापन अनुष्ठान ✦
इस पृष्ठ को बंद करने से पहले, यह छोटा अभ्यास अपनाएँ:
🌿 शांत बैठें। एक हाथ हृदय पर, दूसरा नाभि पर।🌿
🌿 धीरे साँस लें, जैसे कोई गहरी स्मृति लौट रही हो।🌿
🌿 अपने नाम को और आज की एक सच्चाई को धीरे से कहें।🌿
आप फुसफुसा सकते हैं:
🌿 “मैं अधूरी नहीं—मैं स्मृति में लौट रही हूँ।”🌿
🌿 “मैं छाया भी हूँ, मैं प्रकाश भी हूँ।”🌿
🌿 “मैं पहले से ही पूर्ण हूँ।”🌿
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✦ कोमल निमंत्रण ✦
यदि ये शब्द आप तक पहुँचे हैं,
तो इसका अर्थ है—भीतर कुछ उन्हें सुनने के लिए तैयार था।
आपको ज़ोर से नहीं बोलना है।
आप पहले से ही यहाँ हैं।
यह कोई विदाई नहीं—यह एक पुल है।
जब आपकी आवाज़ धीमी लगे,
इन पन्नों पर लौट आइए।
वे परिचित, सचेत, और सदा आपके लिए उपस्थित रहेंगे।
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यह लेख अंग्रेज़ी में मेरे ब्लॉग Vibrant Essence पर भी उपलब्ध है। पढ़ने के लिए [यहाँ क्लिक करें]। ✍️ लेखन एवं अभिलेखन टिप्पणी
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नोट: अनु चंद्रशेखर | CC BY-NC-ND 4.0 | सभी अधिकार सुरक्षित (विस्तृत जानकारी के लिए, देखें https://abhivyaktanubhuti.blogspot.com/p/license-usage-disclaimer.html )
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